फिल्म ‘बदनाम’ को लेकर चर्चा में जैस्मीन: बोलीं- लड़कियों को प्रेरित करने वाला किरदार करना चाहती हूं, जय रंधावा ने कहा- राइटिंग फिल्म का असली हीरो

फिल्म ‘बदनाम’ को लेकर चर्चा में जैस्मीन:  बोलीं- लड़कियों को प्रेरित करने वाला किरदार करना चाहती हूं, जय रंधावा ने कहा- राइटिंग फिल्म का असली हीरो

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भोपाल13 मिनट पहलेलेखक: रौनक केसवानी

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जैस्मीन भसीन इन दिनों फिल्म ‘बदनाम’ को लेकर चर्चा में हैं। इस फिल्म में उनके साथ जय रंधावा भी लीड रोल में हैं। ये फिल्म 28 फरवरी को रिलीज होगी। दोनों ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। इस दौरान जैस्मीन ने बताया कि वो ऐसा किरदार निभाना चाहती हैं, जिससे दूसरी लड़कियों को प्रेरित कर सकें। वहीं, जय रंधावा ने फिल्म की राइटिंग के महत्व के बारे में बताया। पेश है दोनों से हुई बातचीत के कुछ खास अंश..

फिल्म में आपका किरदार कैसा है?

जैस्मीन– मेरे किरदार का नाम नूर है और नूर बादशाह के जीवन में वह चैप्टर है, जिस चीज से उसकी पहचान है, उससे वह नफरत करती है। तो फिल्म में आप उसका द्वंद्व और संघर्ष देखेंगे।

किस फिल्म को दोबारा देखना चाहेंगी?

जैस्मीन- मेरे घर में मेरे दादा-दादी बहुत फिल्में देखना पसंद करते हैं। मेरे दादाजी की जो नई पसंदीदा फिल्म थी, वह थी ‘वीर जारा’, जिसे मेरे दादाजी ने दो-तीन बार मेरी दादी के साथ जाकर देखा। तो वे उस तरह के डाई-हार्ट रोमांटिक थे और एक बार मैं भी गई थी वो फिल्म देखने। तो वो सारी यादें मुझे बहुत इमोशनल कर देती हैं। मुझे ऐसा लगता है कि मैं ‘वीर जारा’ जाकर थिएटर में कभी अकेली बैठकर देखूं और मैं उन्हें अपने पास इमेजिन करूं।

आपकी जर्नी कैसी रही, कौन सा ऐसा किरदार है जिसे आप निभाना चाहती हैं?

जैस्मीन- मेरी जर्नी वैसी ही रही है, जैसी हर किसी की होती है, उतार-चढ़ाव वाली, अच्छी-बुरी, फेलियर और अचीवमेंट, सब कुछ। एक किरदार जिसे मैं निभाना चाहती हूं, मैं किसी खास किरदार या इंसान का नाम नहीं ले सकती, लेकिन मैं निश्चित रूप से ऐसा रोल करना चाहती हूं, जहां मैं दूसरी लड़कियों को प्रेरित कर सकूं। मैं उन्हें यह बताना चाहती हूं कि छोटे शहरों में लड़कियों को अक्सर ‘बेचारी’ के तौर पर देखा जाता है और मैं उस ‘बेचारी’ वाली मानसिकता को बदलना चाहती हूं।

हिंदी फिल्में उस तरह प्रदर्शन नहीं कर पा रही हैं, इसे आप कैसे देखती हैं?

जैस्मीन- मैं कहूंगी कि यह एक पीक है, जिसे हासिल किया गया है, क्योंकि एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री एक साइकिल की तरह चल रही है। मेरे ख्याल से कोविड के बाद सिनेमा हॉल जाने की आदत छूट गई है। पहले हमारी जिंदगी का एक हिस्सा था और अब वह आदत नहीं रही। कहीं न कहीं मेकर्स का ऑडियंस के साथ कनेक्शन छूट गया है और कहीं न कहीं ऑडियंस भी बदल रही है, उनकी पसंद और चॉइस बदल रही है। अब लोगों के पास फोन पर वर्ल्ड सिनेमा मौजूद है, तो मुझे लगता है कि हम सिर्फ लोगों की नब्ज पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं कि ऑडियंस कैसे थिएटर्स में वापस आएगी।

यह सबसे बड़ा बिजनेस है, जब मैं ट्रैवल करती हूं, तो लोग हमारी फिल्मों के बारे में बात करते हैं। लोग सिर्फ ‘कभी खुशी कभी गम’ के बारे में ही नहीं बात करते, बल्कि ‘आरआरआर’ और ‘पुष्पा’ की भी बात करते हैं। इसे ग्लोबल पहचान मिली है, लेकिन कहीं न कहीं वह कनेक्ट खो गया है और हम इसे फिर से ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।

राइटिंग को कितना महत्व दिया जाता है?

जय रंधावा – जब हम एक घर बनाते हैं, तो पंजाबी में उसे ‘बुनियाद’ कहते हैं और अगर वह अच्छी नहीं हो, तो चाहे वह महल हो, दुकान हो, या एक छोटा सा घर हो, वह गिर जाता है। तो इस फिल्म के लेखक जस्सी लोखा हैं। तो फिल्म में इन लोगों को लाने का लक्ष्य यही था कि हमारी बुनियाद मजबूत रहे। उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। इसकी स्क्रिप्ट पर लगभग एक साल लगा है, ताकि यह फिल्म मजबूत बने।

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