1991 में बेहद कम विदेशी भंडार बचा था: मनमोहन सिंह की नीति ने देश को संकट से उबारा, वो रिफॉर्म जिससे बदली इकोनॉमी

1991 में बेहद कम विदेशी भंडार बचा था:  मनमोहन सिंह की नीति ने देश को संकट से उबारा, वो रिफॉर्म जिससे बदली इकोनॉमी


नई दिल्ली48 मिनट पहले

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पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार रात 92 साल की उम्र में निधन हो गया। पूर्व पीएम लंबे समय से बीमार थे। घर पर बेहोश होने के बाद उन्हें रात 8:06 बजे दिल्ली AIIMS लाया गया था, जहां रात 9:51 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।

डॉ. मनमोहन सिंह भले ही लगातार दो बार (2004-2014) देश के प्रधानमंत्री रहे हों, लेकिन उनका पीवी नरसिम्हा राव सरकार के तहत वित्त मंत्री का कार्यकाल ज्यादा याद किया जाता है। वो डॉ. मनमोहन सिंह ही थे जिन्होंने 1991 में गहरे संकट से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारा था।

उस समय देश में सोशलिस्ट इकोनॉमिक सिस्टम था और गहरे संकट में था। तब मनमोहन सिंह ने इंडियन इकोनॉमी के लिब्रलाइजेशन की घोषणा की और देश का इकोनॉमिक ग्राफ पूरी तरह से बदल गया। 2008 में भी जब पूरी दुनिया को मंदी ने अपनी चपेट में ले लिया था तब मनमोहन सिंह ने देश को इस संकट से उबारा था।

इस स्टोरी में डॉ. मनमोहन सिंह के वो इकोनॉमिक रिफॉर्म जिसने इंडियन इकोनॉमी के बदला…

1991 में 1 अरब डॉलर से भी कम का विदेशी भंडार बचा था

इंडियन इकोनॉमी में 1990 के दशक को कभी भी भूला नहीं जा सकता। सालों के मिसमैनेजमेंट के बाद इकोनॉमी की हालत बेहद खराब हो चुकी थी। सरकार अपने रेवेन्यू से ज्यादा खर्च कर रही थी और एक्सपोर्ट से ज्यादा इंपोर्ट किया जा रहा था।

1990-91 के गल्फ वॉर से बढ़ी कच्चे तेल की कीमतों ने भारत की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ा दी। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घटने लगा क्योंकि उसे अचानक अपने इंपोर्ट के लिए बहुत ज्यादा खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आईएमएफ से उधार लेने के बाद भी 1991 तक भारत के पास 1 अरब डॉलर से भी कम का विदेशी भंडार बचा था, जो करीब तीन हफ्ते के इंपोर्ट को पूरा करने के लिए ही पर्याप्त था।

लिब्रलाइजेशन से इकोनॉमी में क्रांतिकारी बदलाव

संकट के बीच, पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहें मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की नीति का ऐलान किया। मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई, 1991 को अपना पहला बजट पेश किया था। 1991 में नई आर्थिक रणनीति को अपनाने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में एक क्रांतिकारी बदलाव आया।

प्राइवेट सेक्टर के खुलने से लिब्रलाइजेशन भारतीयों के लिए अवसरों के प्रवेश द्वार के रूप में उभरा। तब से, भारतीय अर्थव्यवस्था और शेयर बाजारों में कई गुना बढ़ोतरी हुई। भारतीय शेयर बाजार करीब 1400 पॉइंट से 60,000 को पार कर गया है। भारत की रियल जीडीपी 1990 की तुलना में 10 गुना अधिक मजबूत है। तब से भारत ने 30 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर भी निकाला है।

मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उठाए बड़े कदम:

1. फिस्कल करेक्शन

एक बड़े बजट घाटे ने डबल डिजिटल इंफ्लेशन और हाई करंट अकाउंट डेफिसिट दोनों में योगदान दिया था। करेंट अकाउंट डेफिसिट का मतलब है कि आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य उसके निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य से अधिक हो जाना। ऐसे में राव सरकार ने निर्यात सब्सिडी समाप्त कर दी और अन्य कटौती भी की।

मनमोहन सिंह ने बजट में कॉर्पोरेट टैक्स की दरों को 5 परसेंटेज पॉइंट बढ़ाकर 45% कर दिया और बैंक डिपॉजिट जैसे कुछ फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन के लिए सोर्स पर टैक्स डिडक्शन का कॉन्सेप्ट पेश किया। रसोई गैस सिलेंडर, फर्टिलाइजर और पेट्रोल की कीमतों में भी वृद्धि की और चीनी पर सब्सिडी को हटा दिया।

2. ट्रेड पॉलिसी रिफॉर्म

एक्सपोर्ट को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए डॉलर सहित प्रमुख इंटरनेशनल करेंसी के मुकाबले रुपए का लगभग 20% डिवैल्यूएशन किया गया था। पहली बार 1 जुलाई 1991 को 7%-9% और 3 जुलाई को एक बार फिर से 11% का डिवैल्यूएशन किया गया। जयराम रमेश अपनी किताब टू द ब्रिंक एंड बैक : इंडियाज 1991 स्टोरी में लिखते हैं, उस समय के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव पॉलिटिकल रिस्क के कारण डिवैल्यूएशन का विरोध कर रहे थे।

हालांकि, उस समय के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह टू स्टेज डिवैल्यूएशन करना चाहते थे और इसे किया भी गया। इसका फायदा हुआ और इंटरनेशनल मार्केट के साथ ट्रेड और डीलिंग को बूस्ट मिला। इसके अलावा एक्सपोर्ट पर रेगुलेशन और लाइसेंसिंग कंट्रोल को आसान बनाया गया।

3. इंडस्ट्रियल पॉलिसी रिफॉर्म

​​​​​​​इन सुधारों ने इंडस्ट्री को लाइसेंसिंग और इंस्पेक्टर राज से मुक्त कर दिया। निवेश को बढ़ावा देने और इंडस्ट्री को प्रतिस्पर्धी बनाने वाले कदम उठाए गए। 18 सेंसिटिव इंडस्ट्री को छोड़कर सभी में इंडस्ट्रियल लाइसेंसिंग को खत्म कर दिया गया।

4. पब्लिक सेक्टर रिफॉर्म्स

​​​​​​​पब्लिक सेक्टर को इकोनॉमी में बड़े पैमाने पर योगदान देने के लिए ज्यादा ऑपरेशनल फ्रीडम दी गई थी। इन सुधारों का जोर अर्थव्यवस्था को नियंत्रण से मुक्त करना था।

इन कदमों से कई इंटरनेशनल कंपनियां भारत आ सकी

1991 के सुधारों ने फॉरेन इन्वेस्टमेंट को लिब्रलाइज्ड बनाया और इंडसइंड बैंक, एक्सिस बैंक, ICICI बैंक और HDFC बैंक सहित प्राइवेट सेक्टर के बैंकों के लिए रास्ता बनाया। इन सुधारों ने से कई इंटरनेशनल कंपनियां भारत आ सकी। मैकडॉनल्ड्स और केएफसी जैसी फूड से जुड़ी कंपनियों के आने से भारत के कंजम्पशन पैटर्न में भी बड़ा बदलाव आया। इकोनॉमी के फलने-फूलने के साथ-साथ भारतीयों ने लगभग हर सेक्टर में ग्लोबल फ्लेवर का स्वाद लेना शुरू कर दिया।

2008 की मंदी से भी मनमोहन सिंह ने उबारा

1991 के बाद 2008 में भारत को एक बार फिर आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा था। जहां 1991 में आई आर्थिक मंदी के पीछे कई आंतरिक कारण थे, वहीं 2008 में वैश्विक मंदी के चलते भारत की अर्थव्यवस्था गड़बड़ाई थी। भारतीय शेयर बाजार भी धराशायी हो गए थे। हालांकि मनमोहन सरकार के उठाए गए कदमों के बाद साल 2009 से 2014 के बीच अर्थव्यवस्था औसतन 6.7% की दर से बढ़ी।

भारत बन सकता है दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था

तीन दशकों के दौरान, मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते किए सुधार देश की अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हुए हैं और ग्लोबल लेवल पर भारत को एक ब्रांड के रूप में स्थापित करने और बूस्ट देने में मदद की है। वर्ल्ड के बड़े इंटरनेशनल फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन आज भारत की आर्थिक विकास दर को लेकर पॉजिटिव अनुमान जता रहे हैं। भारत आने वाले कुछ वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।

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