‘आर्टिस्टिक फिल्मों को बढ़ावा देना चाहिए’: आदिल हुसैन बोले- ह्यूमन इमोशंस को सही तरीके से दिखाना जरूरी; फिल्म ‘स्टोरीटेलर’ में नजर आए
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43 मिनट पहलेलेखक: किरण जैन
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आदिल हुसैन हाल ही में फिल्म ‘स्टोरीटेलर’ में नजर आए, जिसमें परेश रावल भी मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म को ‘इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया’, ‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ और ‘इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ मेलबर्न’ जैसे बड़े फेस्टिवल्स में अवार्ड्स मिल चुके हैं।
दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान आदिल हुसैन ने इस ग्लोबल सराहना पर अपनी खुशी जाहिर की और फिल्म को लेकर अपने अनुभव साझा किए। पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश:
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जब मेकर्स ने आपको ‘स्टोरीटेलर’ की स्क्रिप्ट दी, तो आपका पहला रिएक्शन क्या था? सत्यजीत रे की कहानियों से जुड़कर आपको कैसा महसूस हुआ?
पहला रिएक्शन था- ये कहानी पहले क्यों नहीं बनाई गई? इतनी शानदार कहानी, जो सालों पहले लिखी गई थी, उसे अब तक किसी ने क्यों नहीं बनाया? फिर सोचा- कितना लकी हूं कि मुझे इसका हिस्सा बनने का मौका मिला।
सत्यजीत रे को उनके खास किरदारों और कहानियों के लिए जाना जाता है। मैं असम से हूं और मेरे घर के पास बंगाल था, जहां बंगाली साहित्य और सिनेमा से मैं बहुत जुड़ा हुआ था। असम में भी अच्छे साहित्यकार और कलाकार हैं, तो दोनों जगहों की संस्कृति से मैं गहरे तौर पर जुड़ा हूं। यही वजह है कि आज मैं जो हूं, वह बन पाया हूं। जब ‘स्टोरीटेलर’ का हिस्सा बनने का मौका मिला, तो ऐसा लगा जैसे मैं सत्यजीत रे की दुनिया का हिस्सा बन गया हूं। यह सोचकर लगता है कि शायद पिछले जन्म में कुछ अच्छा किया होगा, तभी आज ये मौका मिला।
क्या आपको लगता है कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री को सत्यजीत रे जैसी आर्टिस्टिक फिल्मों को ज्यादा बढ़ावा देना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी सिनेमा की असली गहराई को समझ सके?
मुझे लगता है कि हर तरह की फिल्मों के लिए जगह होनी चाहिए। अगर हम समाज में विविधता को मानते हैं, तो सिनेमा में भी यही होना चाहिए। लेकिन आजकल लोग जिंदगी को गहराई से देखने की बजाय आसान तरीके से देख रहे हैं। इसके लिए मेकर्स, एक्टर्स और प्रोड्यूसर्स को मेहनत करनी पड़ती है।
हम अक्सर मान लेते हैं कि ऑडियंस गहरी फिल्मों को नहीं समझेंगे, लेकिन अगर फिल्म मनोरंजक हो और साथ में ह्यूमन इमोशंस को सही तरीके से दिखाए, तो लोग उसे जरूर पसंद करेंगे। फिल्म बनाने वालों को क्राफ्ट पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और ऐसी फिल्मों को बढ़ावा देना चाहिए।
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इस फिल्म को ग्लोबली काफी सराहना मिली है। एक अभिनेता के रूप में, जब आपकी फिल्मों या प्रोजेक्ट्स को ग्लोबल सराहना मिलती है, तो वह अनुभव कितना संतोषजनक होता है?
हां, यह बहुत खास है क्योंकि जिस कला में हम विश्वास करते हैं, वह दुनिया की किसी भी भाषा में समझी जा सकती है। जब अलग-अलग देशों के लोग उसे सराहते हैं, तो लगता है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं। यह बहुत प्रेरणादायक होता है।
सबसे बड़ा मतलब यह है कि यह महसूस होता है कि हम सभी एक जैसे हैं, भले ही हम अलग-अलग जगहों और संस्कृतियों से आए हों। जब हम अपनी फिल्मों में इन भावनाओं को दिखाते हैं, तो यह बहुत संतोषजनक होता है।
परेश रावल सर के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
परेश सर के साथ काम करना शानदार था। हमने सेट पर खूब मस्ती की। वह न सिर्फ बेहतरीन अभिनेता हैं, बल्कि बहुत अच्छे इंसान भी हैं। थिएटर के बारे में भी हमारी अच्छी बातें हुईं और उनके साथ काम करके बहुत मजा आया। मैं खुद को लकी मानता हूं कि आनंद जी ने मुझे इस फिल्म का हिस्सा बनाया।
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शूटिंग के दौरान कोई मजेदार किस्सा, जो आज भी याद आता हो?
हां, दोनों एक-दूसरे को लगातार सुधार रहे थे, खासकर मेरे किरदार को लेकर। फिल्म में मैं गुजराती, और परेश सर बंगाली किरदार में थे। ऐसे किरदार निभाना दोनों के लिए और डायरेक्टर के लिए एक चैलेंज था। डायरेक्टर्स हमेशा एक्टर्स को थोड़ा मुश्किल में डालते हैं ताकि उनका प्रदर्शन बेहतर हो सके। मुझे ऐसे डायरेक्टर्स के साथ काम करना पसंद है, क्योंकि मुझे लगता है कि इससे अच्छा काम निकलता है।
अब तक के अपने करियर से आप कितने संतुष्ट हैं?
मैं अपने काम को सिर्फ करियर नहीं मानता, क्योंकि एक्टिंग मेरे लिए जिंदगी का हिस्सा है। मुझे इस काम से इतना प्यार है कि इसे मैं बस एक पेशा नहीं, बल्कि अपनी जिंदगी मानता हूं।
आपकी बेबाक सोच के लिए आपकी पहचान है। क्या कभी ऐसा लगा कि इसी बेबाकी की वजह से कोई फिल्म या प्रोजेक्ट हाथ से चला गया?
(हंसते हुए) अगर चला भी गया होगा, तो मुझे नहीं पता। जो फिल्में और प्रोजेक्ट मेरे पास आते हैं, उन्हीं में से मुझे चुनना पड़ता है। और जो नहीं आए, वो शायद मेरे लिए थे ही नहीं। मुझे लगता है, जो मेरे लिए सही है, वही मेरे पास आता है- चाहे वह फिल्में हों, दोस्त हों या कोई भी मौका। जो मेरे लिए नहीं बने, वो मेरे पास नहीं आते, और यही ठीक है।
मुझे लगता है जो कुछ भी मिला है, वह मेरा है और जो नहीं मिला, वह भी कहीं न कहीं मेरा हिस्सा है। मैं अपने सफर से खुश हूं और इसके लिए आभारी भी हूं।